१.पाबूजी की फड़
नायक जाति के भील भोपो द्वारा बाँची जाती है।इसमे 'रावणहत्था' नामक वाद्य का प्रयोग होता है।
२.देवनारायण जी की फड़
यह राजस्थान की सबसे प्राचीन एवं सबसे लम्बी चित्रित फड़ है।इसके वाचन मे सर्वाधिक समय लगता है।
भारत सरकार ने 2 सितम्बर 1992 को 2*2सेमी का डाक टिकट जारी किया। फड़ बांचने का कार्य गूर्जर भोपे करते है। इसमे 'जंतर' नामक वाद्य यंत्र का प्रयोग होता है।
३.रामदेवजी की फड़
फड़ बांचने का कार्य'कामड़' जाति के भोपे करते है।
इसमे'रावणहत्था'नामक वाद्य यंत्र का प्रयोग होता है।
'तेरहताली नृत्य' का मूल पाली जिले का 'पादरला' गाँव है।
४.रामदला-कृष्णदला की फड़
यह फड़ भाट जाति के भोपे बांचते है।
इसमे किसी भी वाद्य यंत्र का प्रयोग नही होता।
५.भैंसासुर की फड़
इसका वाचन नही होता।
बावरी या बागरी जाति के लोगो द्वारा चोरी करने निकलने से पूर्व शकुन के रूप मे पूजते है।
नायक जाति के भील भोपो द्वारा बाँची जाती है।इसमे 'रावणहत्था' नामक वाद्य का प्रयोग होता है।
२.देवनारायण जी की फड़
यह राजस्थान की सबसे प्राचीन एवं सबसे लम्बी चित्रित फड़ है।इसके वाचन मे सर्वाधिक समय लगता है।
भारत सरकार ने 2 सितम्बर 1992 को 2*2सेमी का डाक टिकट जारी किया। फड़ बांचने का कार्य गूर्जर भोपे करते है। इसमे 'जंतर' नामक वाद्य यंत्र का प्रयोग होता है।
३.रामदेवजी की फड़
फड़ बांचने का कार्य'कामड़' जाति के भोपे करते है।
इसमे'रावणहत्था'नामक वाद्य यंत्र का प्रयोग होता है।
'तेरहताली नृत्य' का मूल पाली जिले का 'पादरला' गाँव है।
४.रामदला-कृष्णदला की फड़
यह फड़ भाट जाति के भोपे बांचते है।
इसमे किसी भी वाद्य यंत्र का प्रयोग नही होता।
५.भैंसासुर की फड़
इसका वाचन नही होता।
बावरी या बागरी जाति के लोगो द्वारा चोरी करने निकलने से पूर्व शकुन के रूप मे पूजते है।
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